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जिंदगी चल तेरा हिसाब करते हैं

दामन उम्मीद का ...quotes

हौसला 😊

वो बचपन की यादें.....🧗...

****************************************** वो बचपन के दिन भी कितने खास होते थे हिसाब किसी लमहे का हमें रखना ना होता ना फिक्र किसी चीज़ की, ना पाने की चाह होती थी माँ की मुस्कुराहट में ही बस अपनी जान होती थी खिलौना भूल से जो टूट जाय दामन भीग जाता था आज दिलो को तोड़ देने का भी अफसोस नहीं होता सुकून के पल हमें  हर रोज मिल जाया करते थे आज फुरसत के लमहो को ढूंढ़ते जमाना हो गया हजारों गलतियों की सजा होती थी हम पर मुकर्रर आज तो अपनो की बाते भी बहुत तेज चुभती हैं शौक नये खिलौने से खेलने का हर रोज रखते थे दिलों से खेलना साहब  शायद अच्छा नहीं होता एक नज़र टिक जाय जिस पर हर हाल में मेरी होनी थी आज ख्वाहिशे जानकर भी हम नजरअंदाज करते हैं *********************************************

जिंदगी के पन्ने

सब तेरी कृपा 🙏🏻

खुशियाँ हैं आपकी ही झोली में.......

****************************************** खुश रहने के बहाने अच्छे हैं जनाब बेवजह मुसकुराहट ही देकर जाते हैं सितम के बाद, दर्द ए सितम में वक्त जाया हो जिंदगी किसी की इतनी भी बेवजह तो नही अपनी जिंदगी के चित्रकार खुद ही हैं आप तस्वीर की शिद्दत रंगो से नजर आनी चाहिए वजह तलाशने का मौका खुदा ने आपको दिया है चाहत का जुनून फैसलों में नज़र आय, तो अच्छा है खुदा को अफसोस ना हो अपनी शिल्पकारी पर सोचो उसने तुझे कितनी शिद्दत से बनाया होगा खुदा की हर एक कृति निहायत खूबसूरत है कुछ रंग भर दिये, कुछ रंग सजाने है आपको जाना जब छोड़कर, तुम ये दुनिया साहिब वजूद तेरे होने का बस दरमियान ही रह जाय उपलब्धियां तेरे जीवन की तेरे चरित्र से ही नजर आय सब कुछ बयां हो जाये, इतनी हिम्मत कागजों में कहाँ *******************************************

Happy Fathers Day.....💞

***************************************** जिंदगी बिन आपके अधूरी है पापा आप हैं तो हर कमी पूरी है पापा अंदाज कुछ अलग है आपके प्यार का एहसास ए दरमियान आज भी जिन्दा है इस जहाँ की सारी खूबियां हैं मुझमे बस एक आप की नजर की जरूरत है थोडी सी सख्ती मगर दिल में है प्यार आपकी परवरिश में मुझे आज भी गुमान कैसा रिश्ता है हमारा एक पिता बेटी का दर्द एक का दूजे के दरमियान से गुजरता है हाँ मै परी हूँ अपने पापा के दिल की इस बेसुमार दौलत की हकदार हूँ मैं ***********"***************************

गुफ्तगू कुछ दिल की .......

****************************************** हर लमहा सजाने का शौक था मुझे जिंदगी खुद ब खुद सवरती गई                               पता ही ना चला अपनो के जज्बात कुछ अपने से लगते थे मुझे दिलो में उनके हुकूमत कब मेरी चलने लगी                                               पता ही ना चला हर लमहा  अपनो को देना मुनासिब लगता था मुझे रिश्ता कोई भी क्यों ना हो, हम दोस्त कब बन गये                                                             पता ही ना चला उलझनें जिंदगी की कुछ यूँ मुख्तसर की मैने खुशियों के पयाम कब मुखातिब हो चले                                             पता ही ना चला अपने कदमों की हिफाज़त कुछ यूँ की मैने जिंदगी मेरी कब यहाँ  मुनव्वर हो चली                                          पता ही ना चला

क्या है ये कविता