****************************************** वो बचपन के दिन भी कितने खास होते थे हिसाब किसी लमहे का हमें रखना ना होता ना फिक्र किसी चीज़ की, ना पाने की चाह होती थी माँ की मुस्कुराहट में ही बस अपनी जान होती थी खिलौना भूल से जो टूट जाय दामन भीग जाता था आज दिलो को तोड़ देने का भी अफसोस नहीं होता सुकून के पल हमें हर रोज मिल जाया करते थे आज फुरसत के लमहो को ढूंढ़ते जमाना हो गया हजारों गलतियों की सजा होती थी हम पर मुकर्रर आज तो अपनो की बाते भी बहुत तेज चुभती हैं शौक नये खिलौने से खेलने का हर रोज रखते थे दिलों से खेलना साहब शायद अच्छा नहीं होता एक नज़र टिक जाय जिस पर हर हाल में मेरी होनी थी आज ख्वाहिशे जानकर भी हम नजरअंदाज करते हैं *********************************************