********************************* हर रोज ढलता है एक नई सुबह लाने के लिए वो आफ़ताब मुझे एक उम्मीद दे गया उसकी बुलंदी तो देखो आसमां पे है हुकूमत उसकी कोई रूबरू होना भी चाहे कमबखत दीदार उसका वो ज्यादा कर नहीं सकता कुछ इस कदर मुकम्मल है तेरा होना हर वक्त चांदनी चांद में भी तो तेरे होने से होती है हर रोज जाने वाला, हर रोज आ सकता है दुनिया में छाने वाला एक मुसाफिर हो सकता है हस्ती कोई भी क्यों ना हो, यूँ मजबूत नहीं होती कुछ पाने के लिए तो मुसलसल तपना होता है कहां कोई साथ देता है उसका लोग जरूरतों की दीपक जलाते हैं तपिश आफ़ताब की देखकर लोग शाम-ओ सुकून की बात करते हैं पहली दफा ना था, हर रोज तू ढला था इस बार ना जाने क्यों दिल को छू गया शाम तो ढली थी नफ़्ज मेरे दिल में रह गया वो आफ़ताब मुझे एक उम्मीद दे गया जिंदगी का सबक क्या खूब दे गया वो आफ़ताब मुझे एक उम्मीद दे गया ********************************************
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