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जिंदगी यूँही ज़ाया ना कर........



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ज़ाया न करो जिंदगी का एक भी दिन
 क्या पता कब रात हो जाए

 बेताबियां तेरी कुछ कर दिखाने की देखकर
 क्या पता कब खुदा भी मेहरबान हो जाए

 ज़ुनून हो तुझमें इस कदर कुछ पाने का
 दरिया में भी तेरी क़श्ती सवार हो जाए

 बना लो अपने हुनर को अपनी पहचान
 क्या पता कब मंजिल नसीब हो जाए

 आसमां भी चूमे तुम्हारे कदमों को
 क्या पता कुछ ऐसा सयोंग हो जाए

 ना गवाओ मौका जिंदगी के लुफ़्त लेने का
 क्या पता कब मौसम बहार हो जाए

 भर दो रंगों को इस कदर जिंदगी में
 जिंदगी का हर पल गुलाल हो जाए

 महका दो दामन खुशियों से सभी का
 क्या पता जीवन अपना भी गुलफ़ाम हो जाए

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https://youtu.be/LNzlVmjfFrI
 इस कविता को मेरी आवाज में सुनने के लिए आप इस लिंक में जाएं क्योंकि कविता को सुनने का एक अलग ही आनंद होता है


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चुपचाप सब हो जाता है.........