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फिर गया दिसम्बर...... जनवरी है आई



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दिसम्बर का महिना देखो जाने को है
या यूँ कहे यारो, जनवरी आने को है

ऐ दिसम्बर मुझे तेरे जाने का गम नहीं है
मेरी उम्मीदों को जनवरी ने थाम  रक्खा है

वो चाय की चुसकियां, वो कुछ मीठे मीठे से पल
उन अपनो की यारियो ने मुझे सम्भाल रक्खा है

इस अन्त से ही तो नयी शुरुआत होती है
जैसे हर रात के बाद सुबह साथ होती है

क्यों रोए हम इस दिसम्बर, उन पुरानी यादों में
चलो करते हैं स्वागत जनवरी का, नये वादो से

सिर्फ़ यादों की झडियाँ नहीं कितने तजुर्बे साथ हैं
शायद तभी जनवरी के महिने में एक नयी आस हैं

ये फलसफा यूँ ही चलता रहेगा
जैसे पल पल वक्त गुजरता रहेगा

फिर दिसम्बर आयेगा
एक नयी जनवरी लायेगा

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नसीहत. ........

********************************** कहीं दूर बैठा वो सब कुछ देखता हैं निगाहो से उसकी नहीं कुछ छिपता हैं कर लो शरारतें यहाँ पर गुनाह मत करना किसी दूजे के हक की फ़रियाद मत करना चाह ले खुदा तो मंजिल दूर नही लगती राजा से रंक बनने में भी देर नही लगती इंसाफ के तराजू में खुद को तौल कर देखना कभी अपनी हस्ती को भी टटोल कर देखना वज़न अपने किरदार में कुछ इस तरह लाओ  साँसें बंद हो जाय तुम्हारी,दिलों में तुम रह जाओ प्यार मोहब्बत हमदर्दी जब खुले दिल से बरसाओगे अपने अन्दर कभी ना मिटने वाली ताकत पाओगे कट जाएगा हर वक्त, तुझे हिम्मत भी मिलेगी तेरी अच्छाईयो की यहाँ तुझे कीमत भी मिलेगी कभी किसी चीज़ पर सवाल ना होगा बुरे वक्त में भी कोई मलाल ना होगा *********************************

चुपचाप सब हो जाता है.........