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सिला वफ़ा का........



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धरती और अम्बर भी साथ निभाते हैं
ना मिलकर भी वफ़ा का गीत गाते हैं

वनवास राम का था, साथ सीता ने निभाया
साथ पिया का फिर तो सब कुछ रास आया

कृष्ण साथ ना फिर भी समर्पण  राधा का काम आया
साथ ना थे वो पर हर जुबां पर राधेकृष्ण ही नाम आया

घनघोर तप गौरा का, शिव शंकर को पाया था
ना जाने कितने दिन भूख प्यास से बिताया था

लक्ष्मी का तेज कभी भी किसी दिशा में कम नहीं होता
फिर भी उन्हें पति के चरणों में ही जन्नत का सुख होता

जिसकी मिलने की खुशी सबको है सताती
माँ लक्ष्मी परम पिता के चरणों में सुख पाती

तप किसी का भी यहां निरर्थक नहीं जाता
क्यों ना हो, रिश्ता रुह से है जब जुड़ जाता

ये कैसी माया है प्रभु की, सबने वफ़ा को ही चाहा है
मिली बस उसको ही,  जिसने शिद्दत से निभाया है

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नसीहत. ........

********************************** कहीं दूर बैठा वो सब कुछ देखता हैं निगाहो से उसकी नहीं कुछ छिपता हैं कर लो शरारतें यहाँ पर गुनाह मत करना किसी दूजे के हक की फ़रियाद मत करना चाह ले खुदा तो मंजिल दूर नही लगती राजा से रंक बनने में भी देर नही लगती इंसाफ के तराजू में खुद को तौल कर देखना कभी अपनी हस्ती को भी टटोल कर देखना वज़न अपने किरदार में कुछ इस तरह लाओ  साँसें बंद हो जाय तुम्हारी,दिलों में तुम रह जाओ प्यार मोहब्बत हमदर्दी जब खुले दिल से बरसाओगे अपने अन्दर कभी ना मिटने वाली ताकत पाओगे कट जाएगा हर वक्त, तुझे हिम्मत भी मिलेगी तेरी अच्छाईयो की यहाँ तुझे कीमत भी मिलेगी कभी किसी चीज़ पर सवाल ना होगा बुरे वक्त में भी कोई मलाल ना होगा *********************************

चुपचाप सब हो जाता है.........