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सबक़-ए-ज़िन्दगी




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ये जिंदगी है ज़नाब इसे मजबूरियाँ न बनाइए
जो मिला है यहां उसे शिद्दत से निभाइए

कुछ नए की चाह में कुछ टूट न जाये
कहीं मिली हुई चीज़ भी छूट न जाये

सवालों की इतनी लड़ियाँ क्यों खड़ा करता है तू
चलता चल इस जिंदगी को,क्यूँ उलझता है तू

किस बात की उल्फत पाल रखी है
तेरी खुशियां तेरी मुट्ठी में ही तो रखी है

जो तेरा है वो तो तेरा ही रहेगा
फिर दीपक तले अंधेरा ही रहेगा

मत इतना उलझ कि तू ही टूट जाये
जीने का क्या मजा जब सफर ही छूट जाये

वक़्त का क्या भरोसा कब कौन साथ छोड़ दे
फिर बीता हुआ वक़्त हमको सिर्फ अफ़सोस दे

सही गलत का फ़र्क समझ, खुशियाँ तू वसूल कर
ये जिंदगी है एक तोहफा इसे क़ुबूल कर

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Comments

  1. This comment has been removed by the author.

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  2. बार बार सोचा की क्या लिखू पर कही न कही आंखे नम हो जाती थी पढ़ कर बहुत कुछ सीखा जाती हैं आपकी कविताये वाह मैडम बहुत बढ़िया लिखती हैं

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  3. बहुत सुंदर मानो पूरी कविता में एक उपन्यास छिपी हो

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  4. Heart touching lines.. nice poetry mam

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  5. Jindagi ke baare me apki soch bahut achhi hai

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  6. Jivan k lie bahut badi seekh h apki kavita

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  8. Kya Sandesh Dia h apne Kavita k madhyam se

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  9. bahut hi sundar likha hai

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  10. sochne pe majboor krti hai apki ye poem

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